Lucknow: रिपोर्ट :- आनंद वेदान्ती त्रिपाठी अयोध्या
होली-- धर्म या विज्ञान
इस तेजी से बढ़ते हुए भारत मे अपने ही पूर्वजो द्वारा कहे गए स्वास्थवर्धक प्रक्रियाओ के मूल कारण को भुलाकर उनको अपनी सहुलियत के हिसाब से नया रूप दे दिया गया है।
उसका सबसे बड़ा उदाहरण होली है।इसके वैज्ञानिक कारण को आज के समय मे बहुत कम ही लोग जानते होंगे,और अज्ञानतावश इस पवित्र त्योहार को तरह तरह के नशे और अश्लीलता से संलग्न कर दिया गया है।
आयुर्वेद के अनुसार दो ऋतुओं के संक्रमण काल में मानव शरीर रोग और बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। शिशिर ऋतु में कफ की अधिकता और वसंत ऋतु में तापमान बढ़ ने पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं।
इनका बच्चों पर प्रकोप अधिक दिखाई देता है। इसके अलावा वसंत के मौसम का मध्यम तापमान शरीर के साथ मन को भी प्रभावित करता है। यह मन में आलस्य भी पैदा करता है। इसलिए ऋषियों ने इन कामो को करने के लिए होली से जोड़ दिया है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से होली उत्सव के अंतर्गत आग जलाना, अग्नि परिक्रमा, नाचना, गाना, खेलना आदि शामिल किए गए। अग्नि का ताप जहां रोगाणुओं को नष्ट करता है,
वहीं खेलकूद की अन्य क्रियाएं शरीर में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष दूर हो जाता है। शरीर की ऊर्जा और स्फूर्ति कायम रहती है। शरीर स्वस्थ रहता है।